मेरी माँ..!🤱🏻👵🏻

FeaturedMeri Maa

हँस हँस कर वो मेरी हर ग़लतियाँ सहती है;
मेरा बच्चा, सबसे अच्छा, मेरी माँ कहती है।

सुबह जगने से लेकर, रात के सोने तक वो;
रब से मेरी ख़ुशियों की, इल्तिजा करती है॥

कभी बाबा की डाँट से जो सहम जाता हूँ मैं;
अपनी आँचल में छुपा, मेरीढालबनती है।

कभी कभी जब हो जाती है वो बीमार तब;
इस हाल में भी पहले सा ख़याल रखती है॥

जीवन की परेशानियों में, अगर उलझ जाऊँ;
हर बार जैसी आज भी मेरी रहनुमा बनती है।

नहीं रहती है हरपल जुबां पर लेकिनरासि’;
मेरे तो दिल में ममतामयी, मेरी माँ रहती है॥


✍🏻raj_sri

प्यार किसे कहते हैं•••!

जब बिटिया के हाथ माथ पे, थपकी दे हौले हौले।
मीठी मीठी हँसी ठठोली, अन्तर्मन में अमृत घोले॥
जब दो नन्हे कोमल बाँहें, गले हार बनते हैं॰॰॰
प्यार इसे ही कहते हैं हाँ इसे प्यार कहते हैं॰॰॰

पत्नी चाय देने से पहले, जब चुपके से चख ले।
मीठापन दे कर पति, कड़वापन पास में रख ले॥
इक दूजे की ख़ुशी को दोनों दुख अपार सहते हैं॰॰॰
प्यार इसे ही कहते हैं, हाँ इसे प्यार कहते हैं॰॰॰

माँ बाबा बच्चों के लिए छाँटे, सबसे अच्छे निवाले।
मक्खन मलाई बच्चों को, खुद, रूखी रोटी खा ले॥
बच्चों ख़ातिर वो हर मौसम की मार सहते हैं॰॰॰
प्यार इसे ही कहते हैं, हाँ इसे प्यार कहते हैं॰॰॰

भाई बहन रखते हैं रिश्ता, रासि जब जज़्बात से।
सुख- दुख हर हालात से, हर पल हर लम्हात से॥
देह से दूर पर मन से पास परिऽवार रहते हैं॰॰॰
प्यार इसे ही कहते हैं, हाँ इसे प्यार कहते हैं॰॰॰

जब मित्र फिसलन भरी राहों पे, तेरा हाथ पकड़ ले।
घंटों साथ बिताए संग जब, तन्हाई तुम्हें जकड़ ले॥
सही ग़लत हाल में भी संग,चार यार रहते हैं॰॰॰
प्यार इसे ही कहते हैं, हाँ इसे प्यार कहते हैं॰॰॰
______________✍🏻@raj__sri

राम मन्दिर 🛕🚩

ऐसी शुभ घड़ी आई, मन में खुशी लहराई, मेरे भाई रे।
बाजे घर-घर देखो आज बधाई रे.॥

लगी थी मन में एक अभिलाषा;
मिटेगी मन की कब ये निराशा;
कबतक होगा कोर्ट का फेरा, अपना होगा भी क्या डेरा,
कबतक होता रहेगा जग हँसाई रे…!
बाजे घर-घर देखो आज बधाई रे..!!

युगों से जहां था प्रभु राम बसेरा;
म्लेच्छों ने ज़बरन डाला था डेरा;
अपने ही घर-आँगन में, अवध धाम के प्रांगण में,
तंबू में रहने को बिबस थे गोसाई रे…!
बाजे घर-घर देखो आज बधाई रे…!!

त्रेतायुग में वो वन-वन भटके,
कलयुग में कचहरी में अटके;
अब न्यायालय ने किया न्याय, लिख दिया नया अध्याय;
अब तम्बू में ना रहेंगे रघुराई रे..!
बाजे घर-घर देखो आज बधाई रे…!!

वक़्त ने फिर जो करवट बदला;
मंथरा का हर रोड़ा तब पिघला;
मेरे भगवन घट-घटवासी, वन से लौटे वनवासी;
जन्मभूमि आज पुनः मिल पाई रे…!
बाजे घर-घर देखो आज बधाई रे..!!

पाँच सहस्र वर्ष लड़ी लड़ाई;
हमने कई कई पीढ़ियाँ गँवाई।
तब जा कर ये बेला आई, घर घर बाजे शहनाई;
राम धाम संग जग जगमगाई रे..!
बाजे घर-घर देखो आज बधाई रे..!!


✍🏻Rajiv R. Srivastava

श्री रामलल्ला 🙏🏻

दिल तूने देखा न..!

अपनी हालत, ऐ दिल, तूने देखा न.!
कैसे-कैसे हैं संगदिल, तूने देखा न.!!

जला कर चाहत की इक चिनगारी;
जला देते हैं मुस्तक़बील, तूने देखा न.!

दिखा के खूबसूरत ख़्वाब आँखों में;
बढ़ा देते हैं मुश्किल, तूने देखा न.!

लगा कर अपनी आदत वो ‘रासि’;
बदल लेते हैं मंज़िल, तूने देखा न.!

कर के ख़ुद से ही ख़ुद का सौदा;
मुस्कुराता चाक-ए-दिल, तूने देखा न!

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✍🏻Rajiv R. Srivastava

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*चाक-ए-दिल – broken heart

दादा जी॰॰॰

खुशी हमारी, हम सबसे रूठी;
बचपन की प्यारी लाठी टूटी।
दरियादिल दादा की अब वो;
राह दिखाती उँगली भी छूटी॥

वेद, पुराण, रामायण, गीता;
जिनसे हम सबने था सीखा।
‘ज्ञानदान’ किया था जिसने;
गुणी, ज्ञानी, गुरुदेव सरीखा॥

अमृत जिनकी एक-एक वाणी;
डाँट थी जैसी कोई जड़ी-बूटी।
दरियादिल दादा की॰॰॰

उनको खोने का ग़म है लेकिन;
साथ ही साथ एक ख़ुशी भी है।
सदियों से रिसते रिश्तों में अब;
‘प्रेम’ की पनप रही टूसी भी है॥

जाते जाते भी दे गये वो ‘रासि’;
पारिवारिक गठबंधन की घुट्टी।
दरियादिल दादा की॰॰॰

ठगबंधन की अब गागर फूटे;
ये गठबंधन अब आगे ना टूटे।
आपस में सबके हो भाईचारा;
साथ ही किसी का दम ना घुटे॥

रहे सदा सलामत सदियों तक;
प्यारे परिवार की ‘प्रेम-कुटी’।
दरियादिल दादा की॰॰॰

____✍🏻 @Rajiv R. Srivastava

हौसला…

गिर – गिर के भी, संभल जाना;
गर्दिशों में भी यूँ, सदा ही मुस्कुराना।
है हौसले की ही, ये सारी बातें;
टेढ़े रास्तों पर भी, सीधे चलते जाना॥

ग़मों से हो गुजरी, चाहे कई रातें;
सुबह में कली सा, खिल खिल जाना।

भले तोड़ दीया हो, दिल ये ज़माना;
फिर भी ज़माने से, फिर दिल लगाना।

हाथों में ख़ंजर, लिए बैठे ‘रासि’;
लोगों को भी अपने, गले से लगाना।
है हौसले की ही, ये सारी बातें;
टेढ़े रास्तों पर भी, सीधे चलते जाना॥
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✍🏻@raj_sri

अकेले ही टहलते हैं..!🚶🏻🚶🏻🚶🏻

भीड़ में भी आजकल लोग, तन्हा तन्हा ही चलते हैं॥
ऐसे में किसी संग नहीं, चलो, अकेले ही टहलते हैं॥

गुम हो गई अब वो गाँव की युवा गुलज़ार गलियाँ;
बस थके हारे औ बूढ़े पाँव ख़ुद गिरते व संभलते हैं।

खेत खलिहानों की ख़ुशियों को खा गई खामोशी;
बैलों के गले बँधे घुँघरू, अब बजने को मचलते हैं।

सोफ़े व बिस्तर पे मोबाईल में अस्त व्यस्त बचपन;
खेल खिलौने कोने में यूँ पड़े पड़े, करवटें बदलते हैं।

मद्धम हो गई है अब तो, शहर की भी रंगीन शामें;
ख़ाली पार्क के वो बेंच भी, तन्हाई में सिसकते हैं।

अब नहीं है पहरा, उनके पंख औ परवाज़ पे लेकीं;
खुले आसमां में पंछी, सांसे लेने को भी सिहरते हैं।

नहीं रहा फ़ुरसत में अब, हमारे राहों का हमराही;
चलो, कि ख़ुद ही राहों पे गिर गिर के संभलते हैं।

बहला करते थे रासि, कभी एक दूजे से मिल के;
अब तो सब यार दोस्त, मोबाइल से ही बहलते हैं।

✍🏻@raj__sri

Image Courtesy:- GoogleImages🙏🏻

राध्या 2.0

मधुरिम मधुमय जीवन में,
मधु कलश छलकाती वो।
अंतर्मन के अवसादों पर,
स्नेह – सुधा बरसाती वो॥

वीरां पड़े गुलशन में तब,
पुष्प कली बन कर आई;
मेरे जीवन में चलती अब,
बहारों सी बल खाती वो।

माँ के “आँखों का तारा”,
पापा की है दुनिया सारी;
है अभी “नन्ही परी” पर,
बड़ों सा लाड़ लड़ाती वो।

सबसे प्यारी फूल है वो,
मेरी गुलशन की ‘रासि’;
दादा दादी की बगिया में,
चलती है इठलाती वो।

✍🏻Rajiv R. Srivastava

नारी का दर्द..!!

ये सोचकर ही साँसें, थमी रह गई,
इस ज़माने के आगे, जमी रह गई।
नाप न पाई ये आसमाँ, मैं लड़की;
इन आँखों में बस ये, नमी रह गई॥

मुझसे ही सृजित ‘घर संसार’ और;
मेरे लिए ही घर’ की, कमी रह गई।

इनसे ही थी शायद ये ‘वजूद’ मेरी;
इसलिए ही मैं इनमें यूँ, रमी रह गई।

था मुझसे ही जन्मा, ‘वो भी’ यहाँ;
वो ‘आसमाँ’ हुआ मैं, ज़मीं रह गई।

गढ़ तो ली मैंने, ईक दुनिया ‘रासि’;
गढ़ न पाई खुद को ये, कमी रह गई।
____✍🏻 Rajiv R. Srivastava

ImageCourtesy: GoogleImage

कैसे खेलें फाग (होली)

अपनी डफली; अपने राग
अपनी डफली, अपने राग।
कैसे खेलें, किसी से फाग॥

प्रेम सौहार्द के नशे के बदले;
पी कर भांग, उगलते झाग।
कैसे खेलें ॰॰॰

मुख पे मनगढ़ंत मुस्कानें;
ढोंगी दिल में दिखते दाग॥
कैसे खेलें ॰॰॰

भाईचारे का ओढ़ दुशाला;
आस पास सब, बैठे घाघ।
कैसे खेलें ॰॰॰

स्नेह सुधा बरसते बाहर में;
अंदर विचरते ज़हरीले नाग॥
कैसे खेलें ॰॰॰

बिखर गए हार पुष्प पुष्प और,
ख़ाली बच गए बंधन के ताग।
कैसे खेलें ॰॰॰

ऊँच नीच के रेख खींच के;
बाँट रहे कुछ देश कै भाग॥
कैसे खेलें॰॰॰

तन शीतल जल से रंगे पर;
मन में जलते ईर्ष्या के आग।
कैसे खेलें॰॰॰

कहने को सब तन से ज़िन्दा;
मन से ‘रासि’ सभै स्थाग ॥
कैसे खेलें ॰॰॰

बिना खोले दिल की खिड़की,
चाहते आँचल में प्रेम अगाध।
कैसे खेलें ॰॰॰

खिलने से पहले कलियों के;
भँवरे मँडराते चुनने पराग।
कैसे खेलें ॰॰॰

मन के बदले है तन पे लट्टू;
भ्रमित भटके प्रेम से अनुराग।
कैसे खेलें॰॰॰

युवा विदेशी क्रीम में दमके;
ताख से तनहा ताके तनुराग॥
कैसे खेलें॰॰॰
__✍🏻 Rajiv R॰ Srivastava
*ताग- डोर, धागा; *कै – कितने; सभै – सभी; *स्थाग – शव; * अनुराग – आकर्षण; ताख – तख़्त ताके – ताकना/देखना; *तनुराग – केसर कस्तूरी से बना सुगंधित उबटन;
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भोजपुरी गीत – ३ (बधाई)

बधाई बाऽ, बधाई बाऽ, बधाई बबुआ।
तोहके दिल से बा बहुते बधाई बबुआ॥

बाड़ा तूऽ घुमलऽ तीस बरीस तक, बन के पट्ठा छुँटा।
अब घुमिहऽ उमिर भऽ बबुआ, बान्ह के गरदन खूँटा॥
असल जिनिगी के माजा अबे आई बबुआ।
तोहके दिल से बा, बहुते बधाई बबुआ ॥

अब तक खाए के मिलऽत रहलें, रुख़ल सूखल रोटी।
चाभे के अब खूब मिलिहें बबुआ, घर के बनल बोटी॥
दूध घीव आऊर मिसिरी मलाई बबुआ।
तोहके दिल से बा, बहुते बधाई बबुआ॥

बड़ा अमोल होखेला रिसता, संगी आ संगिनी के।
आधा अधूरा जिनिगी सारा, बिन अरऽधांगिनी के॥
दुनिया का होखेला तोहरा बुझाई बबुआ।
तोहके दिल से बा, बहुते बधाई बबुआ॥

चाहे गाँव के गोरी चाहे, मिल जाय कवनो शहरी।
ना सरताज बनईहऽ ना ही, बना के रखिहऽ महरी॥
ना तऽ मामला जल्दिये गड़ऽबड़ाईं बबुआ।
तोहके दिल से बा, बहुते बधाई बबुआ॥

माई बाबू के सेवा करिहऽ, अब पहिले से जादा।
भाई बहिन के पूरा करिहऽ, बिन कईलल भी वादा॥
घर सरग जईसन तोहरो बन जाई बबुआ।
तोहके दिल से बा बहुते बधाई बबुआ॥

कभी ना करिहऽ भेद भाव तू, पति आऊर पतनी के।
जीवन सफ़र में साथ चलिहऽ, हाथ पकड़ पतनी के॥
सफ़र तनिको ना भारी बुझाई बबुआ।
तोहके दिल से बा बहुते बधाई बबुआ॥

एक जिनिगी के जड़ तऽ दुसर, रूप हऽ फुनगी के।
एक साँस तऽ दूसर धड़कन, होखे ला जिनिगी के॥
कहे ‘रासि’ बात तोहके समझाई बबुआ।
तोह के दिल से बा, बहुते बधाई बबुआ॥